Thursday 28 June 2012


कविता के सात रंग
दोहा, हाइकु, गजल, छंदमुक्‍त, गीत, मुक्‍तक, पद 

आकाशवाणी दिल्‍ली की विशेष प्रस्‍तुति के तहत आमंत्रित श्रोताओं के समक्ष 'कविता के सात रंग' कार्यक्रम बुधवार , 27 जून को प्रसारण भवन में आयोजन किया गया जिसमें रचनाकारों ने दोहा, हाइकु, गजल, छंदमुक्‍त, गीत, मुक्‍तक और पदों का पाठ किया। कार्यक्रम के संचालक और रचनाकार अरूण सागर ने दोहा पाठ के लिए कृष्‍ण मिश्र को आमंत्रित करते हुए कहा कि - दोहा की रचना तुलसीदास से आज तक जारी है। कृष्‍ण मिश्र ने समकालीन स्थितियों के संदर्भ में कुछ अच्‍छे दोहे सुनाए -
' पंचायत में न्‍याय का पूछ रहे हो हाल
दारू की दुर्गंध से महक रही चौपाल।'
चर्चित कवि विजय किशोर मानव ने अपने कुछ सार्थक पदों को गाकर सुनाया -
'पुजें महंत मठों में
देकर देवों को वनवास
छोड मन राम राज की आस।'
बाल साहित्‍यकार और गीतकार कृष्‍ण शलभ ने अपने रोमानी और प्रकृति की छटा बिखराते गीतों को प्रस्‍तुत किया -
'फिर आ बैठी आज तुम्‍ही सी किरण पंखिया भोर बगल में
चाय लिए गुनगुनी धूप  की बैठी मेरे पास पी रही ...।'
कृष्‍ण शलभ के गीतों के बाद अरूण सागर ने छंदमुक्‍त कविता के सशक्‍त हस्‍ताक्षर मदन कश्‍यप को आमंत्रित करते कहा कि - छंदमुक्‍त कविता की वह सशक्‍त शैली है जो आमजन को उन्‍हीं की शैली में अपनी बातें कहती है। मदन कश्‍यप ने 'बहुरूपिया' कविता का पाठ किया -

'बनने की विवशता और नहीं बन पाने की असहायता
 के बीच फंसा हुआ वह एक उदास आदमी था...'
हइकू रचनाकार जगदीश व्‍योम ने बताया कि - हाइकू साहित्‍य में स्‍थापित हो चुकी विधा है और यह दुनिया में सबसे ज्‍यादा लिखी जाती है। सतरह अक्षरों की इस कविता में पहली पंक्त्‍िा में पांच, दूसरी में सात और तीसरी में पांच अक्षर होते हैं। फिर उन्‍होंने कई सारगर्भित हाइकू सुनाए -
'उगने लगे
कंक्रीट के वन
उदास मन।'
जगदीश व्‍योम के बाद गजलकार अशोक वर्मा ने अपनी दो गजलें सुनायीं -
'इक घरौंदे की खातिर मैं खटता रहा
हवा थी कि तिनके उडाती रही।'
कार्यक्रम के अंत में अरूण सागर ने अपने मुक्‍तकों का पाठ किया -

'अगर कुछ लोग ही पीते रहे दरिया, समंदर तो
मेरा दावा है सर चढ जाएगा हालात का पानी।'

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